वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
१९ जून, २०१८
अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता!
हुआ जब ग़म से यूँ बेहिस, तो ग़म क्या सर के कटने का ?
न होता गर जुदा तन से, तो ज़ानू पर धरा होता
हुई मुद्दत के ‘ग़ालिब’ मर गया, पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना, कि यूं होता तो क्या होता?
~ मिर्ज़ा ग़ालिब
प्रसंग:
खुद के होने या न होने का क्या आशय है?
संगीत: मिलिंद दाते